( तर्ज - गुरु ! तुमहि तो हो ० )
गति कौन भई ? गति कौन भई ? ।
गति कौन भई
उनकी जनमों ? ॥ टेक ॥
रावणने सतिया चुर लाई ,
दस मुंडी गई माटिनमों || १ ||
कंस असुरने कर अभिमाना ,
नाश किया है जीवनमो || २ ||
दुर्योधनकी बुरी करनिसे ,
फना हुये हरिसे रणमों || ३ ||
तुकड्यादास कहे कश्यपुके ,
प्राण लिये हरिने छनमों || ४ ||
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