( तर्ज - उँचा मकान तेरा ० )
ऐ विश्वनाथ स्वामी !
सुनलो पुकार मेरी ।
द्वारपर खडा में ,
क्षणही करो न देरी ॥ टेक ॥
है विश्व द्वार तेरा ,
जो कुछभि ले उठाले ।
सामान सब भरा है ,
रचना निराली तेरी ॥ १ ॥
हरएक रंग - ढंगसे ,
जो खेल खेलते हैं ।
मुझको जरा न भावे ,
यह शानकी नजारी ।। २ ।।
मै चाहता हूँ तेरा ,
दर्शन मुझे मिले वह ।
बस आस यह लगी है ,
करदो फिकरको पूरी ॥३ ॥
तुकड्या कहे मेरा मन ,
विषयोंमें ना घुमाओ ।
खींचो चरणमें अपने ,
यह अर्ज है हमारी ॥४ ॥
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