मोरे मन
( तर्ज : मोहे पनघटपे नंदलाल ... )
मोरे मन तुम्हीं के
चरण लाग रखोजी ॥
तबही कठिन संकट में
जाय सकोजी || टेक ||
पलपल ही भटकत है ,
दंभ - मोह चटकत है ।
विषय - संग अटकत है ।
इसी कारण बोलत हूँ ,
अब नं दुखोजी ।। मोरे ..।।
निश्चय नहीं दे टिकात ,
ऊठ - ऊठ दौर जात ।
पर जन - मन दुखात ॥
कितनी बार रोक फिर भी
विषय चखोजी ॥ मोरे .. ||२||
अपनों के घर न परे ,
पर - घर को जाय मरे ।
सुधराय नहीं सुधरे ॥
तुकड्या कहे , सत्गुरुबिन ,
कौन जगोजी ? ॥ मोरे ...||३||
पिंपलगांव , ( आंध्र . )
दि . १२. ९. ६२
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