( तर्ज - गुरु ! तुमहि तो हो ० )
चल खोल नयन , चल खोल नयन ।
चल खोल नयन ,
भ्रम हकला दे ॥ टेक ॥
ऊठ मुसाफिर ! क्यों सोया है । ?
नींद भरी यह ढकला दे ॥१ ॥
रामभजन बिन सब कुछ झूठा ,
भेद यही सब सिखला दे ॥ २ ॥
जनम मरण सब भ्रमसे बाँध्यो ,
ग्यान उचारनको साधे ॥३ ॥
तुकड्यादास कहे सत्मारग ,
धरकर जीवन जिलवा दे ॥४ ॥
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