( तर्ज - क्यों नहीं देते हो दर्शन ० )
कौन दूजा यहाँपर ?
सोच कर इस बातका ॥टेक ॥
सब तेरे सम हैं जगतमें ,
एकही जीके बने ।
जीव अरु जो ब्रह्म है ,
नहि भेद उनमें जातका ॥१ ॥
कर्मसे न्यारा हुआ ,
अभिमान धरके देह पर ।
जब जान लेगा ग्यानको ,
तब भय मिटेगा मौतका ॥२ ॥
तम भरा अग्यानसे ,
दिखती अँधारी आँखमें ।
प्रभुके भजनका जब नशा ,
आवे मजा फिर भाँतका ॥३ ॥
कहत तुकड्या भूल मत ,
इस द्वैतके अंधियार में ।
तू एकहीसा है समझकर ,
लौ लगा उस नाथका ॥४ ॥
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