( तर्ज - गुरु ! तुमहि तो हो ० )
सब खोइ उमर , सब कोइ उमर ।
सब खोइ उमर बिरथा प्यारे ! ॥टेक ॥
जो करना था , कुछ नहि कीन्हा ,
विषयनमों चित्तको डारे ॥१ ॥
मानवजन्म मिला बड़भला
कर करनी तनको तारे ॥२ ॥
कर सत्-संग रंग ले अपना
आतमग्यानमों चित्त ला रे || ३ ||
तुकड्यादास कहे मत भूले
सुमर सदा ' जगदीश हरे ' || ४ ||
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