( तर्ज - निरंजन माला घटमें ० )
मोरि मतिया बिगरी ,
श्यामके नामहि सो ॥ टेक ॥
कुछ नहि सूझे काम धाम अब ,
भूल गई महिसो ।
जहँ देखूँ वहँ श्याम पियारा ,
खबर भई नहिसो || १ ||
चलत , हलत , मुख बोलत जैसे
कृष्ण कृष्ण ' महिसो ।
' मैं मोरि ’ धोय गई या तनमों ,
रही अब तूही तुहिसो ॥२ ॥
मैं बिगरी मोरि अखियाँ बिगरी ,
बिगर गई रहिसो ।
देखनवाँकी ज्योती बिगरी ,
देखत गोविंद सो ।। ३ ।।
तुकड्यादास कहे काहे बिगरो ,
पता नही हमसो ।
कौन बिगारा नाम कहा दूँ ,
खबर लो गोविंद सो ॥ ४ ॥
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