( नज - पिया मिलनके काज आज ० )
कौन तरे भवपूर शूर ,
तरनेवाला न्यारा ॥
लाख हजाराम ही कोई ,
विरला है प्यारा ।
इस मायाके घूँघटमांही ,
नाचे यह जग सारा ॥१ ॥
पुरब जनमके सुकृतसे ,
जिनमें भक्तीकी धारा ।
कर्म धर्म सय प्रेमरूप हैं ,
बोधनसे मन मारा ॥२ ॥
महान पंडित बड़े बड़े जो ,
उनको विकट किनारा
जो कोई ग्यानी गुरुसे लागा ,
उसे मिला है थारा ॥३ ॥
काम क्रोधको कर कायूमें ,
मनको अंदर मारा ।
तुकड्यादास कहे , वह तरगये ,
' मैं तू ' भेद बिसारा ॥४ ॥
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