( तर्ज - पिया मिलनके काज आज ० ) भोलानाथ ! दयाल ! दया कर ,
तार मुझे भवसे ।
तुमही हो दीननके दाता ,
प्रीय हमें सबसे ॥टेक ॥
आस लगी दर्शनकी मनमें ,
द्वार खडा कबसे ।
आन मिलो दीननके दाता !
नैन लगे तरसे ।। १ ।।
व्याघ्रांबर आसन तनु शोभे ,
भुजपर सर्प बसे ।
अंग बभूत जटा सिर ऊपर ,
गंग - धार बरसे ।। २ ।।
तिलक कपाला , चंद्र विशाला ,
तिसरो नैन लसे ।
शंख त्रिशूल बिराजे डमरू ,
नंदी स्वार कसे ।। ३ ।।
तुकड्यादास कहे मन भावे ,
अवधुत भेख जिसे
राम रटे जिनकी जिंह हरदम ,
अर्ज हमारि उसे ॥४ ॥
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