( तर्ज - गुरु ! तुमहि तो हो ० )
नर क्यों भटका ? नर क्यों भटका ?
नर क्यों भटका भूले भूले ? ॥ टेक ॥
झूठ पसारा देखत भूला ,
आखिर मरघट में झूले ।। १ ।।
जो जन हरिसे प्रीत न जोरे ,
पछताये खूले खूले ॥२ ॥
काल - बला वह सबपर बीते ,
नहि छूटे कोई चेले ॥ ३ ॥
तुकड्यादास कहे हरि सुमरो ,
तर जाओगे जग - मेले ॥ ४ ॥
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