( तर्ज - मानले कहना हमारा ० )
क्या खुदा कुदरतसे जादा ,
धन जमानेका है प्यारा ? ॥
सब जगत्में धनहि बंदा ,
बेसुमारो धनका धंदा ।
धन बिना आदमी है मंदा ,
क्या कहूँ धनका उजारा ॥१ ॥
जोरु लड़के धनके साथी ,
धन नही तो घर न आती ।
धनसे बढ़ती जगमें कीरत ,
जिंदगी धनका पसारा ॥२ ॥
धन बिना व्रत नेम नाही ,
धन न हो तो तीर्थ नाही ।
धन बिना तन शक्ति नाही ,
धन अजब दे चीज यारा ! ॥३ ॥
धन बिना जगमें न चैना ,
धन रहा तो पूछे मैना ।
धनहि तनकी तीजि नैना ,
धन चमर चौरी डुलारा ॥४ ॥
ऐसा है दुनियाका धंदा ,
धनसे पापीभी आनंदा ।
कहत तुकड्या , धन जो गंदा ,
अंत देवे नर्कद्वारा ॥५ ॥
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