( तर्ज - ईश्वरको जान बंद ० )
यह द्वैत छोड देकर ,
एकहिको मानले तू
एक हिसे होगया तू ,
एकहिको जानले तु || टेक ||
है ब्रह्म रूप तेरा ,
इसमे न कुछ भरम है ।
सत्ता उसीकि सारी ,
यह बोध बानले तू || १ ||
जितना तुझे यह दिखता ,
वह देखना है किसका ? ।
यह बात खोज कर तू ,
अपनमे ध्यान ले तू || २ ||
ना जीव भी दुजा है ,
ना ईशभी दुजा है ।
यह भास , है मृषा सब ,
सच नेम जानले तू || ३ ||
तुकड्या कहे कहनकी ,
जडको मिटाय देकर ।
फिर लक्षरूप होकर ,
अनुभवको छानले तू ॥४ ॥
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