( तर्ज - दर्शन बिन जियरा तरसे ० )
इस जगमें श्रीगुरु पावन है ।॥ टेक ॥
नर ! कर सत्संगत दिलहीसे ।
सुख पावे भर जीवन है ।। १ ।।
जो जो सुनत करत या तनसे
पद पावे वह पूरण है ॥ २ ॥
देव ऋषि मुनि गुरुके सीखे ।
बिन गुरु फिरते बन बन है ॥ ३ ॥
तुकड्यादास कहे जा वहँही ।
जहाँपर बिसर जात मन है ॥ ४ ॥
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