( तर्ज - मानले कहना हमारा ० )
क्यों नहीं मिलते मुझे ?
श्रीकृष्णजी बनवारिया ! ॥टेक ॥
' असुर - मर्दन ' नाम तेरो ,
जन सभी बतलावते ।
भक्तके संकट - विमोचर !
द्रौपदी - उद्घारिया ! ॥१ ॥
काम - शत्रू क्या करे ?
तुम्हरे इशारे से भगे ।
तू कालकाभी काल है ,
जब ' कालिया मर्दारिया ॥२ ॥
भक्तका प्यारा सदा ,
अरु प्रेमका भूखा सदा ।
प्रेमसे चावल चवे ,
ऐसा सुदामा प्यारिया ॥ ३ ॥
शूरसे तू शूर है ,
रण युद्ध किन्हो घोर है ।
कहत तुकड्या , कंसको ,
मारा किया जग - पारिया ॥४ ॥
टिप्पण्या
टिप्पणी पोस्ट करा