( तर्ज - भले वेदांत पछाने हो ० )
प्रेम रस जो चख लेता है ,
वही भव - सिंधू तरता है || टेक ||
कौन किसीका साला - जोरू ?
पलका नाता है ।
अंतकालमें कोउ न साथी ,
आपहि जाता है || १ ||
सब बंधनको तोड तोडकर ,
हरको गाता है ।
गुरु - चरणकी नशा चढाकर ,
नाम रिझाता है || २ ||
चंचल मनसे प्रेम न पावे
वही बिगराता है
चित्त थिराकर घटके अंदर ,
जो कोई जाता है || ३ ||
कहता तुकड्या , अमरनदीका ,
अमृत पीता है ।
' ओहँ सोहँ ' तनके अंदर ,
जाप जपाता है || ४ ||
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