मैं असुवन से
( तर्ज : तुझी प्रीत उघड करू )
मैं असुंवन से दिल धोऊँ आज !
धरूँ ध्यान , गान - शृंगार - साज ॥
करूँ निर्मल
भक्ति की आवाज ! ॥ टेक ॥
सब विषयन की राख बनाभूं ।
समझाऊँ मनको रिवाज ! ॥१ ॥
मन मानस तन्मय पद पाऊँ ।
लीन करूँ सब काम - काज ! ॥२ ॥
' मैं ' ' तू ' भेद अभेद बनायूँ ।
सुन - सुनकर
अनहद की बाज ! ॥ ३ ॥
सत्गुरुदेव से मारग पाऊँ ।
यह आतम का विश्व - राज ! ॥४ ॥
तुकड्यादास जनम नहिं आऊँ ।
निश्चय है , नहीं है अंदाज ! ॥५ ॥
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