( तर्ज - संगत संतनकी करले ० )
हमसे क्यों करते बातें ?
हमको पागल कहवाते || टेक ||
नही हमारा मँगना किसको ,
फिर क्यों दुखवाते ?।
आये फिरते फिरते यहाँपर ,
खुशी उधर जाते || १ ||
पंच कोशका महल हमारा ,
बिच उसके रहते ।
दिल - दरगेकी खिडकी भीतर ,
दुनिया लख पाते ॥२ ॥
पूजा - पाती , नाक पकरना ,
कभू नही पाते ।
कुदरत जैसी बखत दिलावे ,
उसमें गुण गाते ॥३ ॥
जाती , पाँती , नाती इनसे
दूर सदा रहते ।
सद्गुरुसे लौ लगाके अपनी ,
उसमें डुल रहते ॥४ ॥
हमपर ताबा है न किसीका ,
हम सबसे न्यारे ।
कहता तुकड्यादास गुरूका ,
आपहि उजियारे ॥५ ॥
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