( तर्ज - मुझे क्या काम दुनियासे ० )
अरज मेरी सुनो स्वामी !
कृपा दिनपर करोगे क्या ? ।
पड़ा हूँ द्वैतमें अटका ,
ये दुःख मेरा हरोगे क्या ? ॥टेक ॥
किचडमें मोह ममताके ,
भला बांधा हूँ आशासे ।
उठाता पैर भी आगे ,
सहारेसे धरोगे क्या ? ।। १ ।।
भौर नैया अडी मेरी ,
हवा विषयोंकि है आडी ।
तुम्ही मल्लाह बनकर के ,
सिधाईमें भरोगे क्या ? ॥ २ ॥
अटकती कामकी मछली ,
झपट देती है नैयाको ।
करे डगमग डरे जी यह ,
शुकर मनमें भरोगे क्या ? ॥ ३ ॥
जो कुछभी हो भरेंगे पर ,
न हिंमत ही कटे मेरी ।
वो तुकड्यादास कहता है ,
निगाम यह धरोगे क्या ? ॥ ४ ॥
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