( तर्ज - उँचा मकान तेरा ० )
ऐ दीनबंधु मेरे !
सुनलो खबर हमारी ।
भूले हैं हम जगत्में ,
नहि याद भी तुम्हारी || टेक ||
दिनसे कई फँसे हैं ,
भवजालमें घुसे हैं ।
अब ना करूँ यह आसा ,
बस लाज रख मुरारी ! ॥१ ॥
खुब कामने सताया ,
नहि सो करा - कराया ।
मेरा जनम गमाया ,
तुम जानते हो सारी ॥२ ॥
अभितक न संत - सेवा ,
मुझको मिली कहाँपर ।
उमरी गई बितीही ,
अब ना करीये देरी ॥३ ॥
तुकड्या कहे , मुरारी !
वस बुद्धि दे निराली ।
ना मैं भुलूँ तुम्हारी ,
आग्या कहीं पियारी || ४ ||
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