( तर्ज - अगर है ग्यानको पाना ० )
गगनके बीचमों बाजा ,
कोई बिरलाहि सुनता है ।
जो धुनिया हो वहाँका वो ,
खुदी अपनेमें धुनता है || टेक ||
लगे दश द्वार बाहरके ,
चला जाता है अंदरमें ।
खोलकर बंक नाडीको ,
अमरपुर में बिचरता है ।। १ ।।
बजे वहाँ बाज अनहदके ,
नगारेसे वो बंसीसे ।
तन्हा कैसी मिले अरगन ,
मधुर जैसा बिहरता है ॥ २ ॥
वो तुकड्यादास कहता है ,
करो अभ्यास यहि दिनमें
बखत फिरसे नही आवे ,
अमोलिक देह बनता है ॥ ३ ॥
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