मोहे अति आनंद
( तर्ज : मोहे पनघटपे नन्दलाल ... )
मोहे अति आनन्द ,
सन्त छन्द लाग गयो रे !
मेरे जनम - जनम
दुख सभी भाग गयो रे ॥ टेक ॥
फिकर गयी विषयनकी ,
भ्रान्ति गयी सब मनकी
लाज नहीं तन जन की ।
सोयी थी मन्द वृत्ती ,
जाग गयो रे ! ॥ मोहे ... ||१||
चलत प्रेम , बसत प्रेम ,
सोवत जागत ही प्रेम
हृदय मिलत झुलत प्रेम |
प्रेम नहीं जायें ,
मन त्याग गयो रे ! ॥ मोहे ...||२||
जनम् - मरन समान ,
जिसको है ब्रह्मज्ञान ।
फिर छूये क्यों तुफान ??
तुकड्याकी नजर ,
भेद गयो रे ! ॥ मोहे ...||३||
पिंपलगांव ; ( आंध्र . )
दि . २८. ९. ६२
टिप्पण्या
टिप्पणी पोस्ट करा