( तर्ज - संगत संतनकी करले ० )
कुफरको हटा अभी प्यारे !
देख दिलदार पास तेरे || टेक ||
काशी मथुरा क्यों जाता है ?
तीरथ क्या तारे ?।
मन मैला नहि जबतक धोवे ,
कहीं न सुख है रे ॥१ ॥
चार धाममें उमर गुजारी ,
नहि प्रभु पाया रे ।
दिलका कपट हटा संगतसे ,
प्रभु प्रगटाया रे || २ ||
वेद , पुराण , कुराण , पढकर ,
पंडित सव हारे ।
इस मायाके झगडे म्याने ,
बह जाते सारे ॥३ ॥
कहता तुकड्या सद्गुरुकेबिन ,
कौन दुजा तारे ?
उनकी दीक्षा लेकर भाई !
रटो नाम जा रे ॥
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