( तर्ज - अब तुम दया करो महादेवजी ० )
मोरे नंदकुँवर ब्रजराजा !
दिलमें बाज रही छब तेरी ॥ टेक ॥
जमुना तट बंसि बजाई ,
काननमें सुर झनकाई ।
बस गैया दौर बहाई जी ,
ना रही सुधी तनकी री ॥१ ॥
गोपिनके सुर बहलाये ,
सब भाग भागकर आये ।
गोपोंने काम तजाये जी ,
अलमस्त भये नरनारी ।
सिर मोरमुकुटकी शोभा ,
कुंडलकी झलक अनोभा ।
भरजरी दुशाला बांधा जी ,
वह रूप निहार निहारी ॥३ ॥
कहे तुकड्या हमरी आसा ,
बस वही रही अभिलाषा ।
जी दर्शनका है प्यासा जी ,
बस यहिको अडा भिकारी ॥ ४ ॥
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