( तर्ज लीजो लीजो खवरिया ० )
संगमें चोरोंका काहे बजार किया ?
माथे पापोंके गंज
बढाय लिया ॥ टेक ॥
दुश्मनोंकी संगती
यह नाश कर रही ।
यह नाश कर रही
ना कभी प्रभु - भक्तिमें
रंगा दिया सही ।
अपने जीवनकी
काहे धुलधान किया ? ॥ १ ॥
संगतो सत्की करो ,
रहो खुशी सदा ।
है नहीं धोखा कभी ,
मरे जिये सदा ।
सेतो बातें ना मेरी
तू मान लिया ॥२ ॥
छोड़ दे वैमानिको
न पार पायगा ।
अंतमें वह काल
बडाही दुखायगा ।
कहता तुकड्या समझ ,
घर ग्यान दिया ॥३ ॥
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