( तर्ज - मानल कहना हमारा ० )
पीयगा अमृत वही ,
जो सद्गुरुकाही हा बंदा || टेक ||
छोड़कर जग - भावको ,
घर ली समाधी मस्तने ।
विश्वमय बुद्धी करी ,
प्रभुके गुणोंका पाय धंदा ॥१ ॥
चित्त सोहॅमें धराया ,
ध्यास कोहँका हराया ।
प्रेम ओहँमें लगाया ,
ना रखा कुछ और फंदा ॥२ ॥
दिल किया उन्मन सदा ,
कुर्बान कर तन मन सदा ।
मस्त छाया है नशा ,
हर श्वासमें है वहहि धंदा ॥३ ॥
एक रुपको जानकर ,
रहता खुशी हर वक्तमें ।
कहत तुकड्या तब मिले ,
गुरुकी दया आनंद - कंदा ॥४ ॥
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