( तर्ज - दिखादो नजरसे सपना)
सदाके लिये दास
कर लो यह अपना ।
न फिर मुझको कोई
जगतका हो सपना || टेक ||
फिकर एक ऐसी लगी नाथ ! मुझको ।
मुझे कौन आखिरमें
कर लेगा अपना ? || १ ||
जभी कष्ट थे भक्त
प्रल्हाद - तनको ।
भये खंबसे ,
भक्त तारा था अपना ।।२ ।।
दी हाँक तुमको
खुदी दिलसे ध्रुवने ।
अमर कर दिया सरपे
रख हाथ अपना ॥३ ॥
कहे दास तुकड्या
तुम्हारी दयाबिन ।
न जगमें दुजा कोइ
प्यारा है अपना ।।४ ।।
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