( तर्ज - तज दें राह झूठकी ० )
कब भवपार जाउँगा ?
हरिमें चित लगाउँगा ? ॥टेक ॥
आयके दुनियामें ना
तो सच कभू किया ।
फंद - लंदमें रहा , न रामको लिया ।
जमको क्या सुनाउँगा ? ॥१ ॥
दुनियाकि मौज देखकेही
मैं खुशी रहा ।
ना खबर किया कि
मुझे मौत है कहाँ ।
कैसे जी तराउँगा ? ॥ २ ॥
भक्ति की नही हरिकी
दमपेदम कभी ।
जोरशोरमें बढाई आसना सभी ।
आखिर क्या निभाउँगा ॥३ ॥
हे दयालु ! हे कृपालु ! भक्ति दे मुझे ।
चरणमें तुकड्याको धरो ,
दास कर लिजे ।
मनमों प्रेम लाउँगा ॥ ४ ॥
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