( तर्ज - मुझे क्या काम दुनियासे ० )
प्रभूका नाम गानेसे ,
फिकर घरबारकी छूटे ।
न पर्वा है जगत्की अब ,
नात और बातसे टूटे ॥टेक ॥
जिसीके वासते करती
है दुनिया इंतजारी यह ।
वह तो घर बैठकर हमको ,
मिले घटहीमे पट फूटे ॥१ ॥
न परदा भेद - भावोंका ,
कई दिनसे लगा था जो ।
अजब एक शानका जलवा ,
देखकर जागके ऊठे ॥ २ ॥
कहीं तारे , कहीं बिजली ,
कहीं सूरज चमकता है ।
दिवाने हो गये उनसे ,
नशा मनसे भले लूटे ॥ ३ ॥
वह तुकड्यादास कहता है ,
प्रभूके नामको गाओ ।
सभी मिलजायगा आखिर ,
जमानेके पटल टूटे ॥४ ॥
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