( तर्ज - नीरंजन माला घटमें ० )
मत सोवे बंदे !
काल खडा सीर है ॥ टेक ॥
देखत पलपल काम निहरके ,
नही उसे धीर है ।
जरा समय पावे गलतीका ,
मारत जंजीर है ।। १ ।।
जो कुछ करे , करनको जावे ,
डारत सो धूर है ।
माया - फाँस लगावत पीछू ,
टाँगत जमघर है ॥२ ॥
' नेक करो नेकीको पाओ ' ,
मसल यह मशहूर है ।
अपने पाप कियेको देवत ,
नरकहिको घर है ॥३ ॥
तुकड्यादास कहे उठ भाई
भज भज रघुवीर है
उसके बिन गति किसको नाही
साथी वह आखिर है || ४ ||
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