( तर्ज - कायाका पिंजरा डोले ० )
कहो कौन तरे भव - जलमें ?
सब हैं मनके आधिनमे || टेक ||
बड़े ग्यान सुनाते जनको ,
पर चित्त चहे धन - धनको ।
सब भुले लोभके रँगमें ,
सब हैं ० ।। १ ।।
कड़ मर्द बने ' बतलाते ,
घर स्त्रीके मार सहाते ।
बाँधे जाते पलपलमें ,
सब हैं ० ॥२ ।।
कइ सेवा - धर्म उठाते ,
पर कीरतकोहि चहाते ।
सब खोते सेवा उसमें ,
सब हैं ० ।। ३ ।।
कहे तुकड्या बिरला कोई ,
इन बातोंको नहि पाई ।
वहि बसे प्रभू - पद क्षणमें ,
सब हैं ० ॥४ ॥
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