( तर्जना छेडो गाली दूंगी ० )
बस फिकीर यही दिलमाँही ,
कब वह साँई पाउंगी ? ॥टेक ॥
वह यार पता नहि पाता ,
के क्यों वह नूर छुपाता ? ।
क्या हमरा पाप न भाता ?
धोकर कैसे लाउँगी ? ॥१ ॥
हम पापोंके है भागी ,
कैसे होंगे अनुरागी ? ।
बस यार ! फिकिर यह लागी ,
कैसे चढ़ने जाऊँगी ? ॥२ ॥
छल द्रोह हमारे साथी ,
और काम - क्रोध है नाती ।
कब करके यह मजबूती ,
वह सुरती मैं भावुंगी ? ॥३ ॥
कहे तुकड्या ये है बाता ,
गर प्रभू जराभी पाता ।
फिर लगे उसीसे नाता ,
कब उस रँगमें न्हाउँगी ? ॥४ ॥
टिप्पण्या
टिप्पणी पोस्ट करा