( तर्ज - मुझे क्या काम दुनियासे ० )
भजो रघुनाथको प्यारे !
सुधारो प्रीय नरकाय ।
भरोसा है नही पलका ,
पता नहि क्या करे माया ॥ टेक ॥
बडा अनमोल मानुज - तन ,
मिला है भागसे हमको ।
करो इस चीज जिंदगीको ,
रहो सत्- धूलकी छाया ।। १ ।।
हटाकर भेद- छल सारे ,
मिलाओ प्रेम प्रेमीसे ।
सुमर रघुनाथके पगको ,
रँगोओ रामकी माया ॥ २ ॥
भुलें विषयोंमें ना घुमो ,
उन्हें कर दूर इस तनसे ।
चलो सत् राह दुनियामें ,
जभी जीवनमें यश पाया ॥३ ॥
वह तुकड्यादास कहता है ,
रखो ऐसी रहन हरदम ।
राममें जी समा जावे ,
रामरँग ले चले नैया ॥ ४ ॥
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