( तर्ज - मेरो प्रभू झूला झुले घरमाही ० )
गुरु भज , गुरु भज ,
गुरु भज , भाई !
वहि राम , वहि श्याम ,
वहि सब कोई॥टेक ॥
दुस्तर भवजल कठिन है तिरना ,
सद्गुरु पार लगाई ।
बिन सत् - संगत सुख न जगतमें ,
झूठी धनकी कमाई ॥ १ ॥
विघ्न- विनाशक सद्गुरु मेरो ,
सब कुछ देत बनाई ।
स्वारथ तजकर कर गुरु - सेवा ,
आखिरकी सध जाई ॥ २ ॥
ब्रम्ह- स्वरुप साकार जगतमें ,
वही अवतार कहाई ।
तुकड्यादाम कहे गुरु - बोधहि ,
दिव्य स्वरूप दिखाई || ३ ||
टिप्पण्या
टिप्पणी पोस्ट करा