( तर्ज - वारी जाऊँरे साँवरिया ० )
मनके मनमें देखो साँई ,
मन बतलायगा रे॥टेक ॥
मनके मनमें जाकर छुपना ,
मनको नहि करने दो ताना
मनसे मनको रोक ,
तभी सुख पायगा ॥१ ॥
मनहीसे दुनिया उपजाई ,
मनसे पावत सुख - दुःख भाई
मनही शांत करो ,
मनही हो राम पियारे ! ॥२ ॥
मनही मोक्ष नर्क - भय देवे ,
मन चाहे राजा बन जावे ।
मन चिंतनसे
ब्रह्म - सुखको पायगा रे || ३ ||
कहता तुकड्या मन बस करना ,
मनहीसे प्रभुमन मनवाना ।
मनमों मनपन भूल ,
ज्योति सम भायगा रे ॥४ ॥
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