( तर्ज - नारायण जिनके हिरदेमें ० )
प्रभु आपहि आप समा सबमें ,
फिर लागत ज्योत
किसे कहते हैं॥टेक ॥
कौन उसके बिन है ?
नहि जान परे , नहि ध्यान परे ।
सब वहहि नटा अपने मनमें ,
फिर लागत ज्योत
किसे कहते है ? ॥ १ ॥
ना जीव जुदा ना शीव जुदा ,
ना माया देह जुदा उनसे ।
वह खेलनेवाले एकही है ,
फिर लागत ज्योत
किसे कहते हैं ? ॥२ ॥
है दृश्य वही , द्रष्टाभि वही ,
दर्शनभि वही समयूँ तो मैं ।
नहि साध्य औ साधन दोनों वहाँ ,
फिर लागत ज्योत किसे कहते है ?
कहे तुकड्या , जब अग्यान भरा ,
तब न्यारे सब ये दिखते हैं ।
जब ग्यान हुआ सत् संगतसे ,
फिर लागत ज्योत
किसे कहते है ? ॥ ४ ॥
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