( तर्ज - इस तन धनकी कौन ० )
प्रभु ! तेरो रुप मोरे
हियमें दिखा दो ।
अँखियों में तारीकी
यारी चढा दो ॥ टेक ॥
झूठा यह जगजाल
सपना पलकका ।
इससे हटनकी
बुटियाँ पिला दो।।१ ।।
मानुज जनमका
जो कर्तव्यही है ।
वह ग्यान घटमें
तुमही सिखा दो ॥२ ॥
कहाँसे मैं आया
औ जाऊँगा कहाँपे ? ।
इस ग्यानका भेद
तनमें खुला दो ॥ ३ ॥
कहे दास तुकड्या हूँ
तेरो भिखारी ।
मेरो मरण मोरि
नैना बता दो ।। ४ ।।
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