( तर्ज - मेरो प्रभू झूला झुले घरमाही ० )
हरि ! कहो ,
कौन नही स्थान तेरा ? ।
घर घर तेराही छाया उजारा ॥टेक ॥
पापीमें तू है औ पुनमेंभी तू है ,
सब जग तेरा पसारा ।
अमृतमें तूही , तूही जहरमें ,
सबका किया गुण न्यारा || १ ||
तू संतमें और तुही द्रोहियोंमें ,
करनीके फल देत न्यारा ।
और सभी स्थान तेरे समाये ,
पर भक्तमें तू दुनेरा || २ ||
देख पडे रूप तेरा वहींपर ,
ज्या घट सत्का बसेरा ।
कहे दास तुकड्या ,
अजब ख्याल तेरा ,
क्या जाने लुँगरा बिचारा? || ३ ||
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