( तर्ज - नीरंजन माला घटमें ० )
नीरंजन बनका पंथ
बड़ा दूर है || टेक ||
नैन बुझाकर नैनके अंदर ,
देख पडे नूर है ।
चार नयनके अंदर नैना ,
वही पद मामूर है ॥ १ ॥
जबलग चित्त चित्त नहि जाने ,
तबलौ ना चूर है ।
समा जाय मन अपने मनमों ,
प्रेम मिले भरपूर है ॥२ ॥
जहँपर भानहीन तन डोले ,
वहि पद आखिर है ।
तुकड्यादास कह वह बनके ,
संत बड़े शूर है ॥ ३ ॥
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