( तर्ज - कायाका पिंजरा डोले ० )
ना रही किसीकी बानी ,
बिन गुरुके समझो ग्यानी ! ॥ टेक ॥
कोइ इंद्रिय - दमन कराते ,
कइ बिरजा होम बनाते ।
पर प्रभू - भक्ति नहि जानी ,
बिन गुरुके ० ॥१ ॥
कइ माला लेकर बैठे ,
कइ लिये समाधी लेटे ।
पर लोभ गिरावे पानी ,
बिन गुरुके ० ॥ २ ॥
कइ पुराण सुनने जाते ,
मुख बाते कइ बतलाते ।
मायामें डुबकी तानी ,
बिन गुरुके ० ।। ३ ।।
जो सत्-संगतको पावे
वह सच्चा भक्त कहावे
कहे तुकड्या सुनो कहानी
बिन गुरुके || ४ ||
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