( तर्ज - दिखादो नजरसे वह जलवा ० )
दया लो , दया लो ,
दिनानाथ ! मेरी ।
बडे दोषसे डूबि
खाया मुरारी ! ॥टेक ॥
न घरकी फिकिर है
न पैसोंका डर है ।
सहारा सिरफ
एकही याद तेरी ।। १ ।।
कृपालू ' तुम्हारा सुना नाम मैंने ।
इसी दीनपर दृष्टि फेको तुम्हारी ॥२ ॥
भरा पाप दोषोंसे पूरा पुरा है ।
क्षमा करके देदो जी !
भक्ती तुम्हारी ॥ ३ ॥
कहे दास तुकड्या ,
न तुमको बताना ।
तुम्ही साक्षि हो नाथ !
घटघटमें सारी ॥ ४ ॥
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