( तर्ज - वारी जाऊँरे साँवरिया ० )
कहना मत मानो साधूका ,
सुनलो बात यह प्यारे ! ॥टेक ॥
छूट पडेगा विषयविकारा ,
नही रहेगा लोभ तुम्हारा ।
भूल पडे सब काम ,
राम रँग लायगा रे ॥ १ ॥
दूर भगेगी सोना - चाँदी ,
अंग चढेगी निर्मल खादी ।
रहे न किसके फंदी ,
छंद कुचालिया रे ॥२ ॥
भाई - बहनें दूर रहेंगी ,
निंदा घरघर खूब कहेंगी ।
जोरू - लडके फेर फेर
दे गालियाँ रे ॥ ३ ॥
कहे तुकड्या संतनका माने ,
तो वह जमके घर क्या जाने ?
अगर तुम्हें हो दुःख ,
सुख तजना पियारे ! ॥ ४ ॥
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