( तर्ज - क्यों नहीं देते हो दर्शन ० )
भागसे पाई है नरतन ,
क्यों दिवाने ! खो रहा ? || टेक ||
नेकि कर , नेकीसे चल ,
बदनाम मत हो भोगसे ।
नहि तो पकड़ ले जायगा ,
आँखे लगा क्यों सो रहा ? || १ ||
छोड दे विषयोंकि भँग ,
इससे सुखी कोई नही
आखरी जम - जूतियाँ ,
बैठे तो नाहक रो रहा || २ ||
कालका घर है कड़ा ,
उसको दया थोड़ी नहीं ।
पाप करते ले पकड ,
डारे नरक में जो रहा ॥ ३ ॥
कहत तुकड्या नाम भज ,
हरिका सदा आनंदसे ।
सुख पायगा , सुख पायगा ,
उँची मजल चढ जा रहा ॥४ ॥
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