( तर्ज - क्यों नहीं देते हो दर्शन ० )
देखले उलटे नयनसे ,
नैन - नैना रामका || टेक ||
नैनमे ज्योती भरी है ,
दृश्य - द्रष्टा - दर्शकी ।
ऊर्ध्व करके ख्यालको ,
पाओ झरा निज - प्रेमका ।। १ ।।
रक्त श्वेतरु रंग नीला ,
नैनमें जो छा रहा ।
जागृती अरु स्वप्नके ,
सूषुप्त गुण दर्शा रहा ॥ २ ॥
तुरियाके है पास में वह ,
नैन - तारा अंतका ।
प्राप्तकर साधू उसे ,
फल भोगते निज - धामका ॥ ३ ॥
तार तारोंका लगा जब ,
भूलकर तन मन सभी ।
कहत तुकड्या मस्त होकर ,
रंग पावे श्यामका ।। ४ ।।
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