( तर्ज - नागनी जुल्फॉपे दिल ० )
यह गुनाह तेरे सिरपे तैयार है ।
नेकि करले नहीं तो सवार है ॥टेक ॥
काहे मानुजका
जीवन लिया आदमी !
काहे बुद्धीको पाया भले आदमी !
जानकरके बने तू गँवार है ।। १ ।।
संतसंगत न करता पलकभी कभी ।
चोरी - चहाडीसे मौजें उड़ाता अभी ।
अंत मालूम होगा दिदार है || २ ||
किसका कहना न माना
जमाना गया ।
अपने मनकीही तूने
बुराई किया ।
कहता तुकड्या भज
साँई तो पार है ॥३ ॥
टिप्पण्या
टिप्पणी पोस्ट करा