( तर्ज - मानले कहना हमारा ० )
मौत जीना है किसे ?
डर मानते हो काहेका ? ॥टेक ॥
ना मरे चेतन कभी ,
जड तो न जीता था कभी ।
भास झूठा मानकर ,
झगड़ा बढाया मोहका ।। १ ।।
जीव तो प्रतिबिंब है
चेतन नजर तो पड रहा
मूल तो निजब्रम्हसे
उजियाल है सब धामका || २ ||
ना मरे आत्मा कभी
अक्षय रहे सम नित्यही
यह ग्यान जिनको है नही
वहि दु:ख पाते मौतका || ३ ||
मिट्टिमे मिट्टी मिले
और पवनमे मिलता पवन
कहत तुकड्या लोभसे
रोता गडी अग्यानका || ४ ||
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