( तर्ज - मानले कहना हमारा ० )
धिर नहि तेरेबिना ,
प्रभु ! दास तेरा रो रहा है।॥टेक ॥
कौनसा घर देख लूँ
जिसमें तु मुझको मिल सके ?
ढूँढता फिरता मगर ,
पाता पता नहि , तू कहाँ है ? ॥१ ॥
मैं खुदी बैमान हूँ
तुझको भुला जग - जालमै ।
अब आखरीकी अर्ज है ,
दे दो प्रभु ! अपना सहा है ॥२ ॥
कई फकीरोंसे पुछा
' साँई नजर भरदो मेरे ' ।
" पास है तेरे " यही कहते ,
मगर तू ला - पता है ॥३ ॥
ना भुलाओ दासको ,
अब दर्श देदो आयके ।
कहत तुकड्या नाथके बिन ,
जन्म बिरथा जा रहा है ॥४ ॥
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