( तर्ज - गुरुको देखो , अपने घटमांही ० )
समझ यार तू , क्यों पगला बनता ?
विषयमें काहे
डूब मरता ? || टेक ||
झूठ मायामें , किसे सूख पाया ?
जनमको आकर पछताया
दुःखकी व्याधी , नाहक लगवाया ,
प्रभूका नाम नहीं गाया
अंत जब आये , संगमें को आता ?
विषयमें ० ॥ १ ॥
दिवाना बनके , ' सब मेरा ' कहता ।
नींदमे गफलतमें सोता ।
खबर नहि आती ,
प्राण कहाँ जाता ?
लगाता मायासे नाता ।
कर्म करनेको , नेकी नहि पाता ।
पापकी गठडी बँधवाता ।
भूल यह ऐसी , काहे नहि तजता ?
विषयमें ० ॥ २ ॥
गुरुकी माया , अजब संग छावे ।
अमरपद भक्तनको देवे ।
छोड झंझटसे , निजरुप बतलावे ।
शरण जो चले उसे पावे ।
गुरुकी किरपा , क्यों नहि भरपाता ?
विषयमें ०॥३ ॥
नेक कर करनी , धर साधूसंगा ।
लगा ले अँखियोंमें रंगा ।
भजनकी लाली , चढा अमर गंगा ।
रहे मायासे निःसंगा ।
कहा तुकड्याका , क्यों नहि अजमाता ?
विषयमें ० ॥४ ॥
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