( तर्ज - गुरुको देखो , अपने घटमाँही ० )
ख्याल कर जरा अपनी कायामो
दौरता क्यो है मायामो? || टेक ||
उलट कर नैना , चढा रंग अपना ।
छोड़ दे विषयनका बाना ।
भला नहि होगा , इसके सँग नाना ।
सुने मत मायाका गाना ।
गुरुको भजो , लगातार ध्याना ।
चढा मन प्राणको अस्माना ।
करो सत् - सेवा ,
सुख पा लो यामों । दौरता ० ॥१ ॥
गुरु - किरपाकी , लाग गई तारी ।
चढी नैननमों उजियारी ।
नशा मन भाई ,
क्या कहुँ बलिहारी ।
सुनी सोहंकी धुनकारी ।
अनाहद बाजे , बाजत अति प्यारी ।
हुआ मन मगन , सुधी हारी ।
खबर गई तनकी ,
सुख पा लो यामों । दौरता ० ॥२ ॥ गजबकी लाली , शुभ्र श्याम छाई ।
बीचमों नील रंग पाई ।
घटा बादलकी , भौर - भौंर आई ,
झडी अमृतकी टपकाई ।
भ्रमरगुंफासे , योगी सुख पाई ।
वृत्ति निवृत्ति भयी भाई !।
कहा ना जावे , सुख पा लो यामों ।
दौरता ० ॥३ ॥
अमर यह बातें , मिलती संतोंसे ।
भागके ऊँचे अवसरसे ।
मनुज तन माँही , जा पूछो गुरुसे ।
और अजमा लेना जी से ।
धनी हो करके , क्यों फँसते खासे ?
कहे तुकड्या न रहो प्यासे ।
समय फिर नाही ,
सुख पा लो यामों । दौरता ० ॥४ ॥
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