( तर्ज - किस देवताने आज मेरा ० )
तनमें करो कोड़ खोज जी !
आनंद - कंद है ।
गुरुके कृपाबिना न खुले ,
ताल बंद है || टेक ॥
अभ्यास सदा साधकर
लगे रहो भितर ।
देख तभी पायगा
निजघर आनंद है ॥ १ ॥
जल रही है ज्योतिया ,
न बूझती कभी ।
न तैल है , न बात ,
रंग - भंग मंद है ॥२ ॥
न ढूँढकर पता चले ,
न बाहरी दिखे ।
गुरु - दयाको साधलो
तो फिर अनंद है ॥ ३ ॥
स्थीर चित्तको करो ,
करो मनन सदा ।
तुकड्या कहे भजो प्रभू ,
तो टूटे बंध हैं ॥ ४ ॥
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