( तर्ज - अब तुम दया करो महादेवजी ० ) ‘
अपने आप ' न कोई पछाने ,
बातें करत बक्त खोया है।।टेक ॥
कोई बेद पुराणा जाने ,
कोइ कीर्तनमें मस्ताने ।
कोइ अलटे - पलटे बानेजी ,
चित मायामें गोया है ॥ १ ॥
कोइ सीर मूँडाकर आये ,
कोइ भस्म लँगोट चढाये ।
कोई बनमें धूनि लगाये जी ,
मन माया लपटाया है ॥२ ॥
कोइ सिरपे जटा बढावे ,
कोइ रेचक कुंभक भावे ।
पर प्रेम न हरिका पावे जी ,
जिव अहंभाव सोया है ॥ ३ ॥
जो करे गुरुकी सेवा
वहि पावे हरिका मेवां
कहे तुकड्या पता चलावाजी
मै तू का भेद पाया है || ४ ||
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